नई पुस्तकें >> झूम : बॉटल एण्ड बैलेट झूम : बॉटल एण्ड बैलेटअनुरंजन झा
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शराबबंदी के बाद बिहार का अजीब हश्र हुआ
शराबबंदी के बाद बिहार का अजीब हश्र हुआ। अपराध–मुक्त राज्य की कल्पना शायद कल्पना ही रह गई और वापस अपराधियों का बोलबाला हो गया।
इस बार पुलिस–प्रशासन और सरकार की भिड़ंत किड्नैपिंग इंडस्ट्री के माफ़ियाओं से नहीं, Bootleggers से हो रही है। जिन लोगों ने भी ज्यॉफ़्रे सी. वार्ड की लिखी मिनी सीरिज़–‘Prohibition’ या टेरेंस विंटर की लिखी – ‘Boardwalk Empire’ देखी है, वे जानते हैं कि अमेरिका में Prohibition के बाद जो क्राइम उभरा उसके क्या परिणाम हुए। ये वही दौर था जब जॉर्ज रेमुस, अल कपोन, मेयर लैंस्की या उसके सहयोगी के रूप में चार्ल्स ‘लकी’ लुसियानो जैसे Kingpin और Bootleggers ने पूरे सरकारी तंत्र को हिला कर रख दिया और आख़िरकार 1920 में लागू हुए Prohibition को 1933 में हटा दिया गया।
यह किताब बिहार को ब्राज़ील या 20's का अमेरिका न बनने देने की फ़िक्र में लिखी गई है। यह फ़िक्शन और नॉन–फ़िक्शन के बीच टू–फ़िक्शन जैसी कोई किताब है। यह एक नए बिहार को देखती है, ऐसे बिहार को जहाँ एक तरफ़ अपराध को रोकने की तमाम कोशिशें हैं, तो दूसरी तरफ़ 9 लाख लीटर से अधिक की शराब को चूहे द्वारा पीए जाने का सरकारी तर्क भी। क्राइम–फ्री स्टेट की परिकल्पना है, तो रेड–टेप ब्यूरोक्रेसी भी। Bootlegging की जो अजूबी दुनिया ये किताब खोलती है, वैसी पहले कभी कहीं नहीं खुली, न सिनेमा में और न ही साहित्य में। बिहार की पृष्ठभूमि पर लिखी गई शायद पहली पेज टर्नर किताब है –
झूम : Bottle and Ballot.
- संजीव के. झा
(स्क्रीन राइटर, मुंबई)
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